Thursday, September 13, 2018

लघुकथा

'ईमानदारी'


        विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी के सामने से मैं अपने कुछ मित्रों के साथ कुलपति महोदय से कुछ काम के सिलसिले से मिलने जा रहा था, तभी पीछे से किसी ने आवाज लगायी- 'रुकिये महोदय!'

        हम लोग रुके, मुड़कर देखा तो पुलिस की वर्दी-सा कपड़ा पहने चपरासी खड़ा था। उसी ने हमें आवाज़ लगायी थी। चपरासी पास आकर बड़ी विनम्रता से बोला - 'लीजिए, आपका पर्स अभी गिर गया था।'

        मैंने अचम्भित होकर कहा - 'मेरा तो कोई पर्स नहीं गिरा, मेरा पर्स मेरे पास ही है। ये किसी दूसरे का होगा।'

        चपरासी भी अचम्भित होकर बोला - 'आपका नहीं है?'

        मैंने कहा - 'हाँ, मेरा नहीं है।'

        इतना कहते ही हम लोग फिर से मुड़कर लम्बे-लम्बे कदमों से अपनी मंजिल की ओर चल पड़े।

        एक मित्र ने कहा - 'यार तूने पर्स क्यों नहीं लिया। उसमें चार लाल-लाल हजारे की, कुछ पीली-पीली इसके अतिरिक्त भी कई नोटें दिखाई दे रही थी। पूरा कम से कम सात हज़ार तो था ही।'

        मेरा उत्तर था - 'वह ईमानदारी के साथ पर्स मुझे दे रहा था। उसके हिसाब से वो पर्स मेरा था। अगर चाहता तो पर्स अपने पास भी रख सकता था। उसे हल्ला मचाने कि क्या जरूरत थी कि मैंने पर्स पाया है। मगर उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह ईमानदार था, फिर मैं उस पर्स को लेकर बेइमान क्यों बनूँ।'

        सभी मित्र मेरा उत्तर सुनकर खिल खिलाकर हँस पड़े। और हम हँसते-गाते अपनी मंजिल की ओर बढ़ते गये।

- अमन चाँदपुरी

Tuesday, September 11, 2018

'निर्भीक स्वर' की समीक्षा


           इंकलाबी तेवर के गम्भीर कवि हैं अभय सिंह 'निर्भीक' :- अमन चाँदपुरी


          युवा ओज कवि बड़े भाई अभय सिंह 'निर्भीक' से इसी 20 सितम्बर को राजधानी लखनऊ में मुलाकात हुई और इस दौरान उन्होंने मुझे अपना पहला काव्य संग्रह 'निर्भीक स्वर' सप्रेम भेंट किया। माण्डवी प्रकाशन, ग़ाज़ियाबाद से प्रकाशित आकर्षक आवरण से सुसज्जित इस 96 पृष्ठीय इस  पुस्तक में 11 गीत, 42 छंद एवं 19 मुक्तक से एक बेहतरीन काव्य त्रिवेणी का निर्माण हुआ है।

          पुस्तक की शुरुआत कवि के काव्य गुरु श्री विनीत चौहान द्वारा लिखी भूमिका से हुई है। साथ में श्री सर्वेश अस्थाना एवं कवि के पिता श्री विजय बहादुर सिंह आदि के विचार भी हैं। साथ ही कवि के इस 'निर्भीक स्वर' में उनकी कविता पर डॉ. हरिओम पंवार, डॉ. सुनील जोगी, डॉ. कुंअर बेचैन एवं श्री अनवर जलालपुरी आदि जैसे वरिष्ठ और प्रसिद्ध साहित्यकारों की छोटी-छोटी टिप्पणियों में बड़े-बड़े सन्देश भी प्रकाशित है।

          गीत हिन्दी काव्य की एक अत्यन्त प्राचीन मगर सशक्त एवं प्रभावशाली विधा है। इस विधा के माध्यम से कवि (गीतकार) अपने विचारों एवं भावनाओं को एक लयबद्ध रचना के रूप में पाठकों के समक्ष इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि पाठक पढ़ कर बिना मोहित हुए रह न पाए।  वहीं वीर रस की कविताओं की बात करें तो आदिकाल (वीरगाथा काल) से ही इसका प्रारम्भ होता है और रीतिकाल में वीर रस के सिद्ध कवि भूषण से होता हुआ आधुनिक काल में 'दिनकर' तक पहुंचता है। वर्तमान में डॉ. हरिओम पवार, विनीत चौहान,
मदन मोहन समर, आशीष अनल, अर्जुन सिसौदिया, मनवीर मधुर आदि वीर रस के जाने-माने एवं मंचों के लोकप्रिय कवि हैं।

          पन्द्रह जुलाई 1987  में  जन्में 'निर्भीक'  जी के इस संग्रह के गीत -

"भाग्यवान हूँ बहुत, जन्म जो इस धरती पर पाया हूँ।
गौरवशाली भारत के कुछ बिम्ब दिखाने लाया हूँ।।"

"जब अपने शासन में तिल-तिल मरना गलना पड़ता है।
तब जनता को ही इतिहासों का पृष्ठ बदलना पड़ता है।।"

"अपनी धरती पर ही जनता शरणार्थी सम होती है।
सच तो ये है यहाँ ग़रीबी काग़ज़ पर कम होती है।।"

"काश्मीर की वादी का मैं सच बतलाने आया हूँ।
अन्तर्मन के घावों का मैं दर्द सुनाने आया हूँ।।"

"अनगिन बलिदानों से पाया है, कुछ इसका ध्यान करो।
गौरवशाली झण्डे का सच्चे दिल से सम्मान करो।।"


          आदि रेखांकित करने लायक हैं जो इनकी निर्भीकता एवं काव्य प्रतिभा का परिचय देते हैं। ये गीत मन में उत्साह भरते हुए देश प्रेम की भावना का संचार करते हैं और देश की वर्तमान स्थिति पर सोचने को मज़बूर करते हैं।

          दूसरा खंड है छंद का। जिसमें कवि ज्ञानदायिनी माँ शारदे की वन्दना करते हुए कहते हैं -

"वीणावादिनी मैं आप ही का एक बालक हूँ,
आप मेरे ज्ञान का निखार कर दीजिए।।
पुत्र आपका बुलाये कण्ठ में विराजिये माँ,
साधना की नाव मेरी पार कर दीजिए।।
छन्द, गीत, शब्द, लय टूटने न पाये कभी,
मातु मेरी इनमें सुधार कर दीजिए।।
देश में हो नाम मेरा कामना यही है बस,
आप मेरे सार का प्रसार कर दीजिए।।"


          जाति-धर्म के नाम पर आपस में भिड़ाने वाले धार्मिक पंडितों के आचरण से कवि का हृदय जब द्रवित हो उठता है तब वो लिखते हैं -

"विश्व समुदाय जिसे अपना रहा है आज,
स्वयं उस संस्कृति में दाग न लगाइये।
जाति-पंथ, धर्म भेद वाला विष घोल-घोल,
देश में हमारे आप आग न लगाइये।।"


          इसे पढ़कर शायद आपको भी मेरी तरह उर्दू के महान शायर अल्लामा इक़बाल का यह शेर याद आ रहा होगा -

"मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा।"


          इसी खंड में कवि भारत रत्न पंडित महामना मदनमोहन मालवीय जी को भी याद करते हैं -

"शिक्षा संस्कार की जरूरत जो भारत में है,
सत्यवाद ह्रदय में मालवीय ने गुना।
भारत में उच्च शिक्षा के विकास हेतु तब,
बी. एच. यू. का ताना बाना मालवीय ने बुना।।"

"छल, दम्य, भय, मद, लोभ से जो दूर रहे,
इस सूची में प्रथम आपका ही नाम है।"
"बेसहारों के सहारा मालवीय जी हमारे,
भारत की जनता का आपको प्रणाम है।।"


          भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने ओजस्वी स्वर में कवि जो कहते हैं वही समय की माँग भी है। आप पाठकगण उनका यह पूरा छंद पढ़िए। वो कहते हैं -

"भ्रष्टाचार बेईमानी जिसमें दिखाई न दे,
भारत में ऐसा संविधान चाहुता हूँ मैं।।
देश को चलाने हेतु भारत के नेताओं में,
बोस जैसा त्याग, बलिदान चाहता हूँ मैं।।
चहुँ ओर त्राहिमाम-त्राहिमाम हो रहा है,
भ्रष्टाचार का सही निदान चाहता हूँ मैं।।
भ्रष्ट नेताओं को नहीं दिया जाये क्षमादान,
इन्हें मृत्यु दण्ड का विधान चाहता हूँ मैं।।"


          तीसरा खंड मुक्तक का है जिसकी शुरुआत में ही कवि बताते हैं कि आखिर उन्होंने क्या लिखा हैं -

"अपने दिल की पीर लिखी है मैंने अपनी कविता में,
जन-मन की तहरीर लिखी है मैंने अपनी कविता में।
आज़ादी संग्राम बाद जो नीलामी तक जा पहुँची,
टीपू की शमशीर लिखी है मैंने अपनी कविता में।।"

घायल हर अध्याय लिखा है मैंने अपनी कविता में,
पंगु यहाँ पर न्याय लिखा है मैंने अपनी कविता में।
नानक, गौतम, महावीर की धरती अब वो रही नहीं,
शासन को असहाय लिखा है मैंने अपनी कविता में।।


          दिल्ली में बैठे सत्ताधारियों, राजनेताओं और भ्रष्ट आला अफसरों पर कटाक्ष करते हुए कवि लिखते हैं -

"हम भारत पर जान लुटाते, दिल्ली वाले क्या जानें,
हम भारत का मान बढ़ाते, दिल्ली वाले क्या जानें।।
सत्य अहिंसा के पोशक हम अटल वीर व्रतधारी हैं,
हम कैसे हैं सपन सजाते, दिल्ली वाले क्या जानें।।"

"भूखी जनता बिलख रही है, दिल्ली वाले क्या जानें,
सड़कों की हर तड़प सही है, दिल्ली वाले क्या जानें।।
कितनों ने भाई खोये हैं, कितनों का श्रृंगार लुटा,
कथा समूची बिना कही है दिल्ली वाले क्या जानें।।"

"हम गौतम के अनुयायी है, दिल्ली वाले क्या जानें,
हिन्दू-मुस्लिम सब भाई हैं, दिल्ली वाले क्या जानें।।
राम-कृष्ण की पावन भू पर अब अति अत्याचार बढ़ा,
सब वोटों के सौदाई हैं, दिल्ली वाले क्या जानें।।"


          ऐसी ही बेहतरीन रचनाओं से भरा पड़ा यह संग्रह पूर्णत: पठनीय एवं संग्रहणीय है। जिसे 'पंडित प्रताप नारायण मिश्र स्मृति राष्ट्रीय युवा साहित्यकार सम्मान' लखनऊ (2012), 'युवा काव्य मानस सम्मान' दिल्ली (2013), 'कबीर सम्मान' फैजाबाद (2013), 'सृजन सम्मान' यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ (2013), 'विभूति साहित्य सम्मान' बरेली (2014), आदि में मिले पुरस्कार एवं सम्मान भी प्रमाणित करते हैं।

          जिसमें कवि के गहन विचारों, देशप्रेम की भावना, कोमल ह्रदय के साथ-साथ इंकलाबी सोच के भी दिग्दर्शन होते हैं। जिसके लिए कवि निसंदेह बधाई (+91-7052056777) के पात्र हैं।

          विनीत चौहान जी ने इस पुस्तक में कवि के लिए लिखा है कि - "कल वो देश के अग्रणी वीर रस के कवियों में गिने जाएंगे" और मुझे लगता है कि उनका 'कल' आज तीव्र गति से 'आज' में परिवर्तित हो रहा है।

          दुआओं एवं शुभकामनाओं के साथ कवि के दूसरे संग्रह की प्रतीक्षा में उनका अनुज।

                   


समीक्षक - अमन चाँदपुरी
पुस्तक - 'निर्भीक स्वर' (काव्य संग्रह)
कवि - अभय सिंह 'निर्भीक'
मूल्य - 150 रुपये मात्र
प्रकाशक - माण्डवी प्रकाशन, ग़ाज़ियाबद


रचनाकाल - 25-26 सितंबर 2016, चाँदपुर

लघुकथा

'ईमानदारी'         विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी के सामने से मैं अपने कुछ मित्रों के साथ कुलपति महोदय से कुछ काम के सिलसिले से मिलन...